Friday, 26 January 2018

मीठी यादें, कड़वे सच

     मैैं अपनी कहानी लिरवना चाहता हूं;किन्तु जब भी कथानक,पात्र एवं परिवेश  के बारे में सोंचता हूँ, सब कुछ गडमड हो जाता है ।  किन्तु आज अवश्य ही एक कहानी का रेरवाचित्र बुनूगां और उसमें कथा का रंग भरने का यत्न करूंगा   । क्यों नही मैं अपने जीवन की सच्ची कहानी ही सुनाना शुरू करूं ?
उम्र के 79वें पउ़ाव से पूर्व की स्मृतियां कहीं घुंघली तो कहीं स्पष्ट तो जरूर हैं,लेकिन मैं भी आज सन्नध्द हूं कि यादों की रारव कुरेद कर वास्तविकता तथा कुछ सुनी-सुनाई तर्कसंगत बातों के आघार पर जीवन की कहानी प्रस्तुत करूं। लेकिन अपनी कहानी आरम्भ करने के पूर्व अपने पूर्वजों को याद कर,‘‘मरवढ़ी’’ के उद्भव और विकास की जड़ें टटोलना और अपने ग्राम से सम्बन्धित तथ्य इकठ्ठे कर ज्ञात इतिहास के झरोरवे से अपनी जीवनी निहारना आवश्यक प्रतीत होता  है।
           
आजकल हमारे क्षत्रीय समाज यानि "मरवढ़ी" के बच्चे अपने नाम में "राठौर" उपनाम का धड़ल्ले से प्रयोग कर रहे हैं,क्यों? पारिवारिक ऐतिहासिक तथ्यों से पूर्णत: अज्ञान।
भारत में पारिवारिक लिरिवत इतिहास का प्रचलन नगण्य है, कहीं कुछ मिलता भी है तो श्रुत और अप्रमाणिक।"मरवढ़ी" के सम्बन्ध में स्व०श्यामनारायण सिंह,ग्राम-धुसका, की एकमात्र लिरिवत पद्यात्मक पुस्तक "राठौर वंश का इतिहास" है जो इतिहास कम,भावना -प्रधान आरव्यान अधिक है ।फलत: समय -काल का तार्किक विश्लेषण विसंगति पूर्ण हो जाता है।अपने जीवन-वृत के लिये पारिवारिक और मरवढ़ी वंश की तथ्यपरक और तार्किक  पृष्ठभूमि जानना जरूरी है.

मैने अपने बच्चों से,मित्रों से औरश्रेष्ठजनों से सदैव एक प्रश्न किया है, तुम्हारे परदादा का नाम क्या था ?आश्चर्य होगा महज 3-4% सही उत्तर दे सके और परदादा के पिता के नाम पर तो सभी एकदम चुप और बगले झांकने लगते हैं। कितनी विचित्र विडम्बना है कि हमारा समाज बंश –परम्परा को आगे ले जाने के लिये पुत्र-प्राप्ति के लिये पागलपन की हद तक आकांक्षा ररवता और लालायित रहता है। आप 3-4 पीढ़ी को भी नहीं याद ररव सकते हैं तो बंश-परम्परा का कैसा निर्वहन ?अगर आप बंश-परम्परा को सचमुच आगे बढ़ाना चाहते हैं तो अपने प्रामाणिक पारिवारिक इतिहास को जरूर जाने और लेरवापित करें ।इसकी शुरूआत अपने से ही आरम्भ करनी होगी । इससे न तो आप अंधेरे में रहेगें अन्यथा कुछ काल के बाद गुमनाम हो जायेगें ।

 

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